Tuesday, August 30, 2016

जंजीर

मालिक छुट्टी के दिन घर पर बैठा ऑफिस का काम निपटा रहा था.उसकी नजर उसके पालतू कुत्ते पर पड़ी. प्यार भरी नज़रों से उसे देखने हुए उसने सोचा, "कितना अच्छा है ये, कभी भागने की नहीं सोचता."
कुत्ता भी मालिक को उतनी ही प्यार भरी नजरो से देखते हुए सोच रहा था, "इसके गले में तो जंजीर भी नहीं दिखती"

Monday, August 29, 2016

युद्ध-यंत्र

युद्ध का 18वाँ दिन समाप्त हो चुका था, पांडवों को विजय प्राप्त हो चुकी थी. दोनों पक्षों की अधिकाँश सेना का अंत हो चुका था. कृष्ण पांडवों को उनके शिविर में छोड़कर युद्धभूमि से लौट रहे थे. उनको एक सैनिक दिखाई पड़ा. वो मूर्तिवत एक जगह पर खड़ा होकर देख रहा था, चारों ओर बिखरी लाशें और उन पर मंडराते गिद्द और तमाम मुर्दाखोर।

कृष्ण के मन में उत्सुकता जगी कि ये कौन सैनिक है जो इतने महान युद्ध में विजय हासिल करने के बाद उसका जश्न मनाने के बजाय ऐसे युद्धभूमि पर खड़ा है. वो उससे बात करने को पहुँच गए.

"सैनिक! हम विजयी हुए, तुम्हारी वीरता काम आयी, इस विजय का श्रेय तुमको युगों युगों तक मिलेगा" कृष्ण ने कहा.
सैनिक ने कोई जवाब नहीं दिया, यहाँ तक कि पलकें भी न झपकायीं.
"किस देश से आये हो तुम, सैनिक?" कृष्ण ने अगला सवाल पूछा.
"सिंधु-सौवीर से", इस बार उसने जवाब दिया.
"तुम पांडवों की ओर से लड़े?"
"पांडव कौन हैं?" जवाब आया
"तो क्या तुम कौरवों की ओर से थे?" ये कहते हुए कृष्ण का हाथ अपने में लटकी कटार की ओर बढ़ा. युद्ध समाप्त हो चुका था और शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा भी.
"कौरव कौन हैं?" सैनिक ने उसी भाव से जवाब दिया.
"तुम कौन हो? क्षत्रिय? शूद्र? ब्राह्मण? या आजीविका से आकर्षित होकर सैनिक बने कोई वैश्य?" पहली बार कृष्ण किसी की आखों को और प्रवित्ति को पढ़ने में असमर्थ रहे थे और अब उस सैनिक के बारे में सब कुछ जानने की उनकी उत्कंठा बढ़ चुकी थी.
सैनिक वैसे ही उनको देखता रहा, अब तक उसने एक बार भी पलक नहीं झपकायीं थी. उसी तरह अपलक कृष्ण को देखते हुए उसने कहा,
"मैं युद्ध-यंत्र हूँ".
कृष्ण उसकी आँखों में देखने से अब खुद को असहज महसूस करने लगे थे. फिर भी एक सवाल और पूछ ही लिया युग के सबसे बड़े कर्मयोगी ने,
"क्या कर्म है तुम्हारा"
"मृत्यु" सैनिक ने अपलक कृष्ण की आखों में देखते हुआ कहा. उसकी आवाज किसी और लोक से आ रही थी.
रणभूमि से सारे शव गायब हो गए और उनकी जगह वहां पर तीन शव पड़े थे. कर्म, ज्ञान और भक्ति योग के. चारों ओर मृत्यु का अट्टहास गूँज रहा था.

Tuesday, August 23, 2016

पिस्तौल

धांय धांय धांय!
उसने जेब से पिस्तौल निकाली और गोली चला दी. उस बच्चे का चोर-पुलिस पसंदीदा खेल था. पर उसको चोर को पकड़ना पसंद नहीं था, जैसे ही वो उसके हाथ लगता, वो बस पिस्तौल निकालता था और गोली चला देता था.

वह बड़ा हुआ; अब वह गोली नहीं चलाता था. अब वह सिर्फ पकड़ा करता था, अपने आस पास की चीजों को, अपने रिश्तों को, अपने सपनों को. जितना वो उनको पकड़ने की कोशिश करता था, उतना ही वो चीजें उससे दूर होती जा रही थीं.

इस पकड़म पकड़ाई के खेल से उसे ऊब होने लगी थी, और उसे बचपन का वो चोर-पुलिस का खेल याद आया, जब वो चोर को पकड़ता नहीं था, सिर्फ निपटाता था और खुश हो जाता था.  बस फिर क्या था, उसने अपनी जेब से पिस्तौल निकाली और दुनिया को गोली मार दी.
धांय धांय धांय!