पुरानी खूबसूरत यादों के ताज़ा होने पर, दिल के अंतरतम में किसी कविता का जन्म होता है. अक्सर ये अनकही ही रह जाती हैं, पर आज कह रहा हूँ, कि तुम समझ सको मुझे.
अन्जाने में ही सही,
आज तुमने,
हरे कर दिए कुछ घाव,
मेरे दिल के.
जाने क्या कहा तुमने,
जो, बैठा जब अकेले;
यादे बहती गयीं यूँ, ,
मानो दर्द का दरिया,
उमड़ आया हो, बिन बारिश ही.
तुमने जो कहा,
झूठ तो था सब मगर;
वैसा ही कुछ था,
एक सच भी मेरा.
चले थे हम, राहों में कभी,
किसी को समझ, अपना हम-कदम;
काश! देख पाते हम,
उनके पैरों की,
हिचकिचाहट,
ना जाने, किस राह,
मुड़ चले वो, अचानक,
और यह भी न समझा मुनासिब,
एक बार, सलाम-ए-रुखसत तो कहते.
उसी मोड़ पर खड़े,
ताकते रहे उसी राह,
दिन, महीनो, बरसों;
शायद कभी तुम ........ हाँ शायद!!
औ" आख़िर चल ही दिए,
छोड़कर, उस मोड़ को,
सीने में दफ़न करके,
उन यादों को,
वो साथ में चले कुछ कदमों को.
आज तुमने फिर से खोल दिया,
पर्दों को, जिनसे ढका था,
मेरे ख्वाबों का वो हिस्सा;
छोड़ दिया वापस तुमने,
मुझे उसी मोड़ पर, उन्ही राहों पर,
जहाँ कभी वो रुखसत हुए थे,
बिना अलविदा
कहे.
jab koi arse baad achanak dikhta hai to dil ko ek thandi hawa si lag jaati hai pankaj bhai.
ReplyDeleteBehtareen sir..😊😊😊
ReplyDeleteBehtareen sir..😊😊😊
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