जिंदगी की दौड़ में, सब यूँ बढ़ते गये,
कुछ खुदा बन गये, कुछ बुत बन गये।
वो थे बदनसीब, जो वहाँ पर पहुँचे,
जहाँ वो, पत्थर के खुदा बन गये।
हम रूह थे, जाने कब, जिस्म हो गये,
अपनी चाहत, अपनी ख्वाहिशों से जुदा हो गये।
इक अदद घर की, जरुरत थी हमको,
जो घर थे भी, वो अब मकाँ हो गये।
क्या सोचकर सफर पर चले थे हम 'पंकज'
आईना देखो एक बार, क्या से क्या हो गये।।
कुछ खुदा बन गये, कुछ बुत बन गये।
वो थे बदनसीब, जो वहाँ पर पहुँचे,
जहाँ वो, पत्थर के खुदा बन गये।
हम रूह थे, जाने कब, जिस्म हो गये,
अपनी चाहत, अपनी ख्वाहिशों से जुदा हो गये।
इक अदद घर की, जरुरत थी हमको,
जो घर थे भी, वो अब मकाँ हो गये।
क्या सोचकर सफर पर चले थे हम 'पंकज'
आईना देखो एक बार, क्या से क्या हो गये।।
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