जब सत्ताएं डरती हैं,
वे जुलम ढहाया करती हैं;
भूखी - सोयी जनता पर,
लाठी बरसाया करती हैं.
झूठे आरोपों में,
लोगों को,
लोगों को,
कारागार दिखाया करती है.
प्रशंसा में मुग्ध,
चापलूसों संग,
चापलूसों संग,
दरबार सजाया करती है.
जब सत्ताएं डरती हैं,
झूठे डर दिखाया करती हैं;
साम, दाम, दंड, भेद से
जन को फुसलाया करती हैं.
जन की आवाजों को, अनसुना कर,
वो शोर बताया करती हैं;
त्रिशंकु की हालत में, पहुँच,
द्वि-चरित्र दिखाया करती हैं.
औ"
जब उठती है, जनता
सत्ताएं डरा करती हैं,
इक गूँज से उस जन की,
सत्ताएं हिला करती हैं.
जब चलती जनता राजपथ पर,
सत्ताएं गिरा करती हैं,
जब चलती जनता राजपथ पर,
सत्ताएं गिरा करती हैं.
great dude
ReplyDeleteAj ki paristhiti me ekdum satik...
ReplyDeletewell done .............
ReplyDeleteअभिषेक भाई, मानसी और अनाम व्यक्ति- आप सभी का धन्यवाद... मेरे ख़याल से हम सबको इस सत्ता के जुल्मों को याद रखना चाहिए, ताकि वक़्त आने पर हम भी राजपथ पर चलने वाली जनता में शामिल हो सकें.
ReplyDeleteलाल किले के दलालों के हाथ जनता के तर्जनी से बढ़कर नहीं होंगे
ReplyDeleteइस सत्ता का तिलिस्म भी टूटेगा..
जय हिंद जय बाबा रामदेव
बहु सुन्दर अभिव्यक्ति