बुनते हैं ज़ाल,
हम खुद के चारों ओर;
जानते हुए यह,
कि मुमकिन न होगा,
इससे निकलना.
हर दिन जोड़ते हैं,
एक नया तन्तु उसमे,
और पूरे होने पर,
छटपटाते हैं,
बाहर निकलने को उससे.
हम खुद के चारों ओर;
जानते हुए यह,
कि मुमकिन न होगा,
इससे निकलना.
हर दिन जोड़ते हैं,
एक नया तन्तु उसमे,
और पूरे होने पर,
छटपटाते हैं,
बाहर निकलने को उससे.
bahut khoob bhaiya.. ! kaafi deep !
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया........
ReplyDeleteगहन विचार..........................
अनु