कवितायें - कहानियाँ
Sunday, July 1, 2012
ओ पुरवाई, ओ पुरवाई;
ओ पुरवाई, ओ पुरवाई;
अच्छा हुआ, जो तू आई.
पर तू क्यूँ अकेले आई;
बरखा को क्यूँ छोड़ आई.
ओ पुरवाई, अब वापस जा;
काले मेघ और बरसा ला;
सारे मिलकर उधम मचाना,
हम सब को फिर तुम नहलाना.
(चित्र साभार - आशीष पटेल)
3 comments:
SWAROCHISHA SOMAVANSHI
July 2, 2012 at 1:24 AM
:) purvaai.....
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ANULATA RAJ NAIR
July 23, 2012 at 9:52 AM
सुन्दर......
मासूम सी रचना.
अनु
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पंकज वर्मा
July 28, 2012 at 10:47 PM
@Swarochish/ Anu - Dhanyvaad.
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:) purvaai.....
ReplyDeleteसुन्दर......
ReplyDeleteमासूम सी रचना.
अनु
@Swarochish/ Anu - Dhanyvaad.
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