Wednesday, August 12, 2009

सवेरा आया

आज एक किरण गिरी धरा पर,
सुबह - सुबह।
कली पर पड़ी, कली मुस्कुराई,
और पुष्प बनी।
दूर कहीं एक खग चहचहाया,
उठो मित्र, सवेरा आया॥

हर दिशा हुई प्रफुल्लित, ताज़ा
हवाओं का झोंका आया।
भौरों की गुंजन से, गूंजित हुई दिशाएं;
मन के भीतर एक संगीत उठा,
उठो मित्र, सवेरा आया॥

2 comments:

  1. sundar!!!
    reminds me of Sumitra nandan Pant! may b am wrong
    but it also makes me aspire for a pollution free environ. :)

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  2. this one perfectly suits for all late-nigher of iitk :P

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