एक दिन सुबह हुई, पर सुबह ना हुई,
एक दिन..
एक दिन पक्षी चहचहाये, पर उनसे स्वर न आये।
एक दिन..
एक दिन फूल खिले, पर बहार न आई।
एक दिन..
एक दिन धूप तो हुई, पर अंधेरा न मिटा.
एक दिन..
तितली ने उड़ना छोड़ दिया,
उस दिन...उस दिन नदी ने बहना छोड़ दिया,
उस दिन...
उस दिन, रंग स्याह से थे,
उस दिन...
उस दिन, सारा दिन रात सी थी।
उस रात..
उस रात चाँद पूरा निकला, पर चांदनी न हुई।
उस रात और उस दिन..
उस रात और उस दिन, बस तुम साथ न थी।
और फिर,
और फिर, बहार कभी ना आई;
और फिर, चांदनी क़भी ना खिली,
और फिर,
और फिर, सुबह कभी ना हुई।
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