बहुत दूर दिखाई देता हैं आसमाँ;
इतना दूर, कि उसे छूने की हसरत में,
बीत जाती है, सारी उमर;
एक दिन मुठ्ठी में भरके लाएंगे उसे,
बिछायेंगे उसे इसी धरती पर,
बैठ उस पर खेलेंगे,
बैठ उस पर खेलेंगे,अपने सपनों से,
उस खेल में जीतेंगे कौड़ी दर कौड़ी,
हटा देंगे,
हटा देंगे, जीवन से वो पल,
जब हमने किये समझौते;
जिएंगे उस दिन के बाद,
सपनों के साथ, जो जिद्द पाले थे,
कि पाना है तुम्हे,
मुठ्ठी भर आसमाँ।
बस,
जरूरत है;
बस,
जरूरत है; समझने की,
कि सपनों को रोककर भी जीना,
क्या कोई जिंदगी है.
अच्छी नींद तभी आती है,
जब इस नग्न, कठोर धरातल पर,
आप बिछाते हैं,
सपनों की उस चादर को,
जो आपका प्रारब्ध है;
उस चादर को,
जिसे छूना आपकी हसरत है.
और उस चादर को,
जिसे पाने की चाहत को,
दिल में ही दबाये,
लोग जिए चले जाते हैं;
और सोचते हैं, फिर;
हम कभी अच्छे से सोये नही.
क्यूंकि, आज भी;
जीने के बाद भी, मरने के बाद भी,
नींद टूटती है, उनकी रातों में,
और कहती है,
काश तुमने एक कोशिश की होती,
समझने की,
समझने की, कि सपने क्या हैं तुम्हारे,
होना क्या चाहते थे तुम,
और अंत में क्या बनकर मुर्दे बने लेटे हो;
नींद आती तुमको,
नींद आती तुमको,
जो की होती कोशिश तुमने,
पाने को अपने हिस्से का,
एक मुठ्ठी आसमाँ।
आजाद होना है
आजाद होना है, हर बंधन से,
मुक्त करना है खुद को,
लोगों की अपेक्षाओं से,
बनी बनाई पगडंडियों से,
समझेंगे थोड़ा, आखिर,
जीना क्या है,
सीखेंगे उसको थोड़ा थोड़ा,
जानेंगे अपने सपनों को,
दौड़ेंगे पाने उनको,
जिनकों पाने की हसरत भर में,
लोग जीते गए, मरते गए।
लेकर आएंगे, हम जब,
धरती पर अपने आसमान को,
और उस चादर को, बिछा सोएंगे,
नींद आएगी हमको तब;
जीवन के खेल के सारे पासे,
सारी कौड़ियां, जीतेंगे;
एक एक करके,
क्यूंकि हाथों में होगा जो,
मेरा एक मुठ्ठी आसमाँ।।
इतना दूर, कि उसे छूने की हसरत में,
बीत जाती है, सारी उमर;
एक दिन मुठ्ठी में भरके लाएंगे उसे,
बिछायेंगे उसे इसी धरती पर,
बैठ उस पर खेलेंगे,
बैठ उस पर खेलेंगे,अपने सपनों से,
उस खेल में जीतेंगे कौड़ी दर कौड़ी,
हटा देंगे,
हटा देंगे, जीवन से वो पल,
जब हमने किये समझौते;
जिएंगे उस दिन के बाद,
सपनों के साथ, जो जिद्द पाले थे,
कि पाना है तुम्हे,
मुठ्ठी भर आसमाँ।
बस,
जरूरत है;
बस,
जरूरत है; समझने की,
कि सपनों को रोककर भी जीना,
क्या कोई जिंदगी है.
अच्छी नींद तभी आती है,
जब इस नग्न, कठोर धरातल पर,
आप बिछाते हैं,
सपनों की उस चादर को,
जो आपका प्रारब्ध है;
उस चादर को,
जिसे छूना आपकी हसरत है.
और उस चादर को,
जिसे पाने की चाहत को,
दिल में ही दबाये,
लोग जिए चले जाते हैं;
और सोचते हैं, फिर;
हम कभी अच्छे से सोये नही.
क्यूंकि, आज भी;
जीने के बाद भी, मरने के बाद भी,
नींद टूटती है, उनकी रातों में,
और कहती है,
काश तुमने एक कोशिश की होती,
समझने की,
समझने की, कि सपने क्या हैं तुम्हारे,
होना क्या चाहते थे तुम,
और अंत में क्या बनकर मुर्दे बने लेटे हो;
नींद आती तुमको,
नींद आती तुमको,
जो की होती कोशिश तुमने,
पाने को अपने हिस्से का,
एक मुठ्ठी आसमाँ।
आजाद होना है
आजाद होना है, हर बंधन से,
मुक्त करना है खुद को,
लोगों की अपेक्षाओं से,
बनी बनाई पगडंडियों से,
समझेंगे थोड़ा, आखिर,
जीना क्या है,
सीखेंगे उसको थोड़ा थोड़ा,
जानेंगे अपने सपनों को,
दौड़ेंगे पाने उनको,
जिनकों पाने की हसरत भर में,
लोग जीते गए, मरते गए।
लेकर आएंगे, हम जब,
धरती पर अपने आसमान को,
और उस चादर को, बिछा सोएंगे,
नींद आएगी हमको तब;
जीवन के खेल के सारे पासे,
सारी कौड़ियां, जीतेंगे;
एक एक करके,
क्यूंकि हाथों में होगा जो,
मेरा एक मुठ्ठी आसमाँ।।
wow !!
ReplyDeleteSapne bina kya zindagi
aur vo sapne bhi kya jo jeene na dein !!
utkristh :)
ReplyDeleteacchi likhi hai
Umda!!
ReplyDeleteहिंदी की कहानियों का श्रेष्ठ संकलन पढ़िए
ReplyDeleteएक बेहतरीन कविता..
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