जब सत्ताएं डरती हैं,
वे जुलम ढहाया करती हैं;
भूखी - सोयी जनता पर,
लाठी बरसाया करती हैं.
झूठे आरोपों में,
लोगों को,
लोगों को,
कारागार दिखाया करती है.
प्रशंसा में मुग्ध,
चापलूसों संग,
चापलूसों संग,
दरबार सजाया करती है.
जब सत्ताएं डरती हैं,
झूठे डर दिखाया करती हैं;
साम, दाम, दंड, भेद से
जन को फुसलाया करती हैं.
जन की आवाजों को, अनसुना कर,
वो शोर बताया करती हैं;
त्रिशंकु की हालत में, पहुँच,
द्वि-चरित्र दिखाया करती हैं.
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जब उठती है, जनता
सत्ताएं डरा करती हैं,
इक गूँज से उस जन की,
सत्ताएं हिला करती हैं.
जब चलती जनता राजपथ पर,
सत्ताएं गिरा करती हैं,
जब चलती जनता राजपथ पर,
सत्ताएं गिरा करती हैं.