Saturday, November 14, 2015

क्या से क्या हो गये

जिंदगी की दौड़ में, सब यूँ बढ़ते गये,
कुछ खुदा बन गये, कुछ बुत बन गये।

वो थे बदनसीब, जो वहाँ पर पहुँचे,
जहाँ वो, पत्थर के खुदा बन गये।

हम रूह थे,   जाने कब, जिस्म हो गये,
अपनी चाहत, अपनी ख्वाहिशों से जुदा हो गये।

इक अदद घर की, जरुरत थी हमको,
जो घर थे भी, वो अब मकाँ हो गये।

क्या सोचकर सफर पर चले थे हम 'पंकज'
आईना देखो एक बार, क्या से क्या हो गये।।

Tuesday, November 3, 2015

सवाल बड़े हो गये हैं.

वो जब छोटे थे, तब बहुत अच्छे थे. मासूम से थे. कभी कभी सिर में दर्द करवा देते थे, पर उनको बस एक बार आखें तरेर कर देखो तो शांत हो जाते थे. मामूली से सवाल थे वो जिनका जवाब आता रहा तो ठीक नहीं तो बस "पता नही" कह कर बैठ जाना होता था

पर अब वो बहुत परेशान करते हैं. घंटों तक दिमाग़ में बस वही सब चलता रहता है. अब आँखें तरेर कर देखो तो वो वापस वैसे ही आँखें दिखाते हैं. और उनका इस तरह से देखना दिल और दिमाग़ दोनों को चीर कर रख देता है. कभी कभी तो लगता है कि आख़िर इन सवालों को मैने पहले से क्यूँ नहीं रोक दिया था.

सवाल बड़े हो गये हैं.