कवितायें - कहानियाँ
Sunday, July 1, 2012
ओ पुरवाई, ओ पुरवाई;
ओ पुरवाई, ओ पुरवाई;
अच्छा हुआ, जो तू आई.
पर तू क्यूँ अकेले आई;
बरखा को क्यूँ छोड़ आई.
ओ पुरवाई, अब वापस जा;
काले मेघ और बरसा ला;
सारे मिलकर उधम मचाना,
हम सब को फिर तुम नहलाना.
(चित्र साभार - आशीष पटेल)
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