अश्रुपूरित नेत्रों से देखते रहे, जाने की राह तेरी;
सोचते रहे, कि आखिर हमने खता क्या की?
सागर से भी ज्यादा बूंदे थी इस जलद में,
फिर प्रेम के दरिया के सूखने की वजह क्या थी?
जो जरा सी धूप होते ही छोड़ना था तुमको साथ,
हमसाया बनने का वादा क्यूँ किया?
तमाम बंदिशों का इल्म तो था तुमको जब,
हरदम साथ रहने का हमने, इरादा क्यूँ किया?
काश, न मिलते कभी तुमसे
थामते न कभी हाथ तेरा,
होता यही, कि जी न होती जिंदगी कभी;
यूँ भी कहाँ, अब रहा जीना मुनासिब.
सोचते रहे, कि आखिर हमने खता क्या की?
सागर से भी ज्यादा बूंदे थी इस जलद में,
फिर प्रेम के दरिया के सूखने की वजह क्या थी?
जो जरा सी धूप होते ही छोड़ना था तुमको साथ,
हमसाया बनने का वादा क्यूँ किया?
तमाम बंदिशों का इल्म तो था तुमको जब,
हरदम साथ रहने का हमने, इरादा क्यूँ किया?
काश, न मिलते कभी तुमसे
थामते न कभी हाथ तेरा,
होता यही, कि जी न होती जिंदगी कभी;
यूँ भी कहाँ, अब रहा जीना मुनासिब.