Saturday, September 21, 2013

अनदेखे सपने

एक शहर था, जिसमे रहते थे दो दोस्त। हम उनको पहला और दूसरा ही कहकर पुकारेंगे, क्यूंकि कहानी के लिहाज से उनके नाम महत्वपूर्ण नहीं हैं। एक बात थी, जो दोनों की दोस्ती  को विचित्र बनाती थी। हर दिन वो मिलते थे, शहर के किनारे से गुजरने वाली एक शांत नदी के किनारे पर खड़े एक गुलमोहर के पेड़ के नीचे; तब पहला दूसरे को बताता  पिछली रात देखे अपने सपने के बारे में। और उससे भी विचित्र बात यह थी कि पहला हर रात एक सपना देखता था. दूसरा उसके सपनों को सुनता था और उसका अर्थ ढूंढता था। फिर दोनों मिलकर निकल जाते थे, उस सपने की दुनिया में सैर करने। दोनों के दिन ऐसे ही कट रहे थे, बेहद ही खुशनुमा। उनके सपनो की दुनिया बहुत विशाल थी; कभी वो जाते थे परियों के देश, तो कभी देवताओं की नगरी की सैर करते थे। और सबसे खूबसूरत सपनों की सैर तो तब होती थी जब दोनो किसी आम के बगीचे में बैठकर घंटो मीठे रसीले आमों का आनंद लेते थे।


धीरे धीरे दोनो बड़े हो गये। पर उनका सपने देखने, साझा करने, अर्थ पूछने और उनमें सफर करने का क्रम ना टूटा। पर फिर, एक दिन कुछ अलग सा हुआ। उस रात पहले को कोई भी सपना ना आया। अगले दिन दोनो बैठे थे अपनी पसंदीदा जगह, जो खूबसूरत थी या नहीं, ये तो पता नहीं, पर उनकी तमाम यादों से जुड़ी होने की वजह से उन दोनों की ही पसंदीदा हो गयी थी। और वो दिन भी बसंत के थे। गुलमोहर के उस पेड़ के नीचे बिखरे सैकड़ों गुलमोहर के फूल ऐसे लग रहे थे मानो शांत भूमि पर बिछे जलते हुए कुछ अंगारे।  दूसरा इस इंतजार में था कि कब पहला पिछली रात के स्वप्न की बात करे उससे, और दोनों एक नए सफ़र पर चलें। 

पर उस दिन तो पहले के पास कहने को कोई भी स्वप्न ना था। शांत बैठा रहा वो, बस इतना कहा उसने कि "कल रात मुझे कोई भी सपना ना आया". और वो अंगारे भूमि से ऊपर उठकर मानों वातावरण में व्याप्त हो गए. पहला बेहद ही दुःख अनुभव कर रहा था अपने मित्र को निराश करने पर. दुसरे ने पूछा "क्या सच". पहले ने सिर्फ हाँ में अपने सिर हिलाया। दूसरे ने आगे कुछ ना कहा और दोनो फिर भी बैठे रहे वहां काफी वक़्त तक और नियमित किस्म की बातें करते रहें। पर आज का दिन थोड़ा लम्बा रहा, क्यूंकि आज, वो बस उस गुलमोहर के नीचे ही बैठे थे, और बस बैठे रहे, न कि गए किसी सफ़र पर। 


अब तो एक नया ही क्रम बन गया, पहले को सपने आने पूरी तरह बंद हो गये थे; क्यूं ये तो नहीं पता, पर था ऐसा ही। और अगर सपने आते भी पहले को, तो वो सपने कम और सच ज्यादा होते थे।  अब भी बैठते थे हर दिन दोनो उसी गुलमोहर के नीचे, और हर दिन, दिन की लंबाई बढ़ती जा रही थी। जब पहले को सपने आते भी थे, तो भी उन सपनों में सफर करने नहीं जाते थे दोनो, क्यूंकि वो होती थीं, वही सच्चाइयाँ जिनको जीते थे हर दिन दोनो, और शायद जिनसे बचने को ही दोनो हर दिन जाते थे सपनों की दुनिया में सफर करने को।

और एक दिन दूसरा रोज के जाने के वक़्त से कुछ पहले ही उठ गया वापस जाने को, क्यूंकि दिन थोड़े लम्बे हो गये थे ना। जब वो चलने लगा, पहला बस उसे देखता रहा और सोचने लगा उन सपनों के बारे में जो उसने उन रातों में देखे थे, जब उसने सपने नहीं देखे थे।


Thursday, September 19, 2013

Tears are flowing, like a heavy rain

Tears are flowing, like a heavy rain;
My heart got broken, this time again.

Never thought of it, when you held my hand;
one day this heaven, will turn into sand.

Remembering the moment, we had first touch;
nothing happened in my life, as beautiful as such.

On my bike, going along, riverside;
shivering a bit, holding me tight.

I still walk there, with your memories;
never felt, it is the, same breeze.

Easily you said, we should move on;
still wondering, how to work it upon.

Is it possible, to look into, one's eye;
O! how can I forget you, in a fly.

Throughout the life, I'll always miss
oh that, oh our, first lovely kiss.

That we are separated, is hitting my brain;
tears are flowing like a, heavy rain;
tears are flowing like a..........