Wednesday, November 26, 2014

दो अधर

वो आना मेरे पास तुम्हारा,
नजदीक, और नजदीक,
धीरे - धीरे.

उन मद्धम साँसों की आवाज
जिनको महसूस करती हैं,
मेरी साँसे;

बाहों के घेरे,
हम और तुम,
सिमटे जिनमे;

वो गहरी आँखें,
आँखें जिनमे,
डूबता जाता हूँ,

तेज होती,
साँसें हमारी,
बंद होती
वो पलकें तुम्हारी;

स्पर्श,
दो अधरों का,
वो उस पल में होना,
सिर्फ हमारा,

और,
और कुछ भी नहीं.

Monday, November 10, 2014

एक मुठ्ठी आसमाँ

बहुत दूर दिखाई देता हैं आसमाँ;
इतना दूर, कि उसे छूने की हसरत में,
बीत जाती है, सारी उमर;

एक दिन मुठ्ठी में भरके लाएंगे उसे,
बिछायेंगे उसे इसी धरती पर,
बैठ उस पर खेलेंगे,
बैठ उस पर खेलेंगे,अपने सपनों से,

उस खेल में जीतेंगे कौड़ी दर कौड़ी,
हटा देंगे,
हटा देंगे, जीवन से वो पल,
जब हमने किये समझौते;

जिएंगे उस दिन के बाद,
सपनों के साथ, जो जिद्द पाले थे,
कि पाना है तुम्हे,
मुठ्ठी भर आसमाँ।

बस,
जरूरत है;
बस,
जरूरत है; समझने की,
कि सपनों को रोककर भी जीना,
क्या कोई जिंदगी है.

अच्छी नींद तभी आती है,
जब इस नग्न, कठोर धरातल पर,
आप बिछाते हैं,
सपनों की उस चादर को,
जो आपका प्रारब्ध है;
उस चादर को,
जिसे छूना आपकी हसरत है.
और उस चादर को,
जिसे पाने की चाहत को,
दिल में ही दबाये,
लोग जिए चले जाते हैं;
और सोचते हैं, फिर;
हम कभी अच्छे से सोये नही.
क्यूंकि, आज भी;
जीने के बाद भी, मरने के बाद भी,
नींद टूटती है, उनकी रातों में,
और कहती है,
काश तुमने एक कोशिश की होती,
समझने की,
समझने की, कि सपने क्या हैं तुम्हारे,
होना क्या चाहते थे तुम,
और अंत में क्या बनकर मुर्दे बने लेटे हो;

नींद आती तुमको,
नींद आती तुमको,
जो की होती कोशिश तुमने,
पाने को अपने हिस्से का,
एक मुठ्ठी आसमाँ।

आजाद होना है
आजाद होना है, हर बंधन से,
मुक्त करना है खुद को,
लोगों की अपेक्षाओं से,
बनी बनाई पगडंडियों से,
समझेंगे थोड़ा, आखिर,
जीना क्या है,
सीखेंगे उसको थोड़ा थोड़ा,
जानेंगे अपने सपनों को,
दौड़ेंगे पाने उनको,
जिनकों पाने की हसरत भर में,
लोग जीते गए, मरते गए।

लेकर आएंगे, हम जब,
धरती पर अपने आसमान को,
और उस चादर को, बिछा सोएंगे,
नींद आएगी हमको तब;

जीवन के खेल के सारे पासे,
सारी कौड़ियां, जीतेंगे;
एक एक करके,
क्यूंकि हाथों में होगा जो,
मेरा एक मुठ्ठी आसमाँ।।

Wednesday, November 5, 2014

अस्तित्व



पतझड़ का मौसम;
पेड़ों से गिरते पत्ते,
पीले, लाल, भूरे,
सूखे से पत्ते;
पत्ता पत्ता,
मैं भी झर रहा,
उनके जैसे;

हल्की हवा भी,
उड़ा लेती उनको,
और ले जाती,
किसी, और ही दुनिया में,
डालों से टूटे पत्ते,
और वो,
जो बिखरे मुझसे

सागर की खारी बूँदे,
होड़ लेते उनसे मेरे आँसू,
अस्तित्व उसका घुल जाता,
मिल जाता है,
सागर में;
मैं भी घुल गया हूँ,
उस विशाल जलद में।

दोनो हाथ फैलाये,
मैं,
खड़ा हूँ,
रेत के टीले पर;
रेतीली आंधियाँ,
होती हैं कितनी खुश्क,
छा जाता है अंधकार,
रेत के बादलों का,
और जब छँटता वो;
गुम हो जाता,
मैं साथ उसके।

अब मैं प्रकृति हूँ,
प्रकृति मुझमे;
घुल गया, अपना अस्तित्व मिटा,
वापस से प्रकृति में।।

Thursday, March 13, 2014

"मुझे याद है"

मुझे याद है।  मुझे याद है वो पल, जब हम बैठे हुए गंगा के किनारे पर और यूँ हीं अचानक से तुमने कहा कि क्यूँ न उस पार चलकर देखें नदी के दूसरे किनारे को, मानो वहाँ कोई और दुनिया बसती हो।  मुझे याद है ठण्ड के उस मौसम में खिली हुई धूप में किया गया नाव का वो सफ़र, सफ़र जिसमे तय की थी हमने दूरी शून्य से अनंत की।  मुझे याद है आज भी वो "छप" की आवाज जो आती थी, जब चप्पू हौले से समा जाता था गंगा के पानी में। उसमे और संसार के सारे संगीत के सम्मिलित स्वरों में क्या अंतर है, आज भी न समझ सका। मुझे याद है, उस वक़्त हुई हमारी ढेर सारी बातें, जो हमारी आँखों ने कही और सुनी थीं।
Credit - Vatika Singh
मुझे याद है, उन बातों में तुम्हारा कहा गया एक - एक शब्द जिनमे छुपा था तुम्हारा सारा प्यार। 
मुझे याद है, नदी का वो दूसरा किनारा, जहाँ हमने लिखा था रेत के कणों पर अपना नाम यह सोचकर कि कभी यह रेत के कण पत्थर बनेंगे और हमारा नाम अमर हो जाएगा युगों युगों के लिए।  रेत के उन कणों को भी अपने आप पर कितना अभिमान आया होगा।  मुझे याद है, घंटों तक बैठ कर हम निहारते रहे डूबते हुए सूरज को।  उसकी लाल किरणें तप्त थीं, उतनी ही जितना हमारा प्यार और शीतल भी थीं, उतनी ही जितनी उस ढलती शाम में रेत।  हमारे ह्रदय की हालत भी तो कुछ ऐसी ही थी।  मुझे याद है उन लाल रश्मियों का नदी की लहरों के साथ नृत्य करना और हमारे मन-मयूर का उस नृत्य से ताल से ताल मिलाना। 
मुझे याद है, मुझे याद है वो दिन, वो शाम और उस दिन के बाद बीते कई वैसे दिन। मुझे याद है और हमेशा याद रहेगा वो दिन और उसके बाद बितायी गयी तारों की चादर तले सारी रात। 

Wednesday, March 12, 2014

विश्वास

दोनों एक पहाड़ी नदी के किनारे पर बैठे थे। लड़की उठकर नदी के पानी की ओर बढ़ी; वह भी उसके साथ चल पड़ा। उसने लड़के का हाथ थामे हुए पानी में अपना पहला कदम रखा, कदम थोड़े डगमगाए। उसने पलटकर देखा, वह एकटक उसे देख रहा था, उसको देखकर उसे भरोसा हुआ, वैसा जैैसा अक्सर लोगों को हो जाता है, साथ जीने का, साथ मरने का। वह थोड़ा और आगे बढ़ी, बहाव बहुत तेज था; उसके लिए अपने पैर सम्भाल पाना भी मुश्किल था.
लड़के को लगा कि अब वह उसे साथ लेकर नहीं लौट सकेगा। उसने लड़की की ओर देखा, उस लड़की की आँखों में अटूट विश्वास भरा हुआ था, और चेहरे पर सुरीली सी मुस्कान। उसने लड़की का हाथ छोड़ दिया और किनारे की और लौट चला। 

Wednesday, January 22, 2014

"मैं अनन्त हूँ"

कहीं दूर एक आकाशगंगा में एक तारा अपनी उम्र पूरी कर चुका है। उसके अंदर की उर्जा खत्म होती दिखाई दे रही है, वह सिकुड़ता जाता है; उसका अस्तित्व मिटने को है, अचानक!
अचानक से उस तारे में एक महान विस्फोट होता है, और उसके गर्भ से बिखर पड़ते हैं नये बने तत्व सारे ब्रह्माण्ड में। ऐसे करोड़ो अरबों तारों में निर्माण होता है हर उस तत्व का जो हममें हैं। करोड़ों और वर्ष लगते हैं जीवन की उत्पत्ति होने में, और मेरा, मेरा आस्तित्व तो बहुत ही नया और क्षणिक है। पर मुझमे समाहित है वो सारा इतिहास, वो सारी ऊर्जा।
मैं अनन्त हूँ।