Wednesday, November 26, 2014

दो अधर

वो आना मेरे पास तुम्हारा,
नजदीक, और नजदीक,
धीरे - धीरे.

उन मद्धम साँसों की आवाज
जिनको महसूस करती हैं,
मेरी साँसे;

बाहों के घेरे,
हम और तुम,
सिमटे जिनमे;

वो गहरी आँखें,
आँखें जिनमे,
डूबता जाता हूँ,

तेज होती,
साँसें हमारी,
बंद होती
वो पलकें तुम्हारी;

स्पर्श,
दो अधरों का,
वो उस पल में होना,
सिर्फ हमारा,

और,
और कुछ भी नहीं.

No comments:

Post a Comment