बुनते हैं ज़ाल,
हम खुद के चारों ओर;
जानते हुए यह,
कि मुमकिन न होगा,
इससे निकलना.
हर दिन जोड़ते हैं,
एक नया तन्तु उसमे,
और पूरे होने पर,
छटपटाते हैं,
बाहर निकलने को उससे.
हम खुद के चारों ओर;
जानते हुए यह,
कि मुमकिन न होगा,
इससे निकलना.
हर दिन जोड़ते हैं,
एक नया तन्तु उसमे,
और पूरे होने पर,
छटपटाते हैं,
बाहर निकलने को उससे.