Tuesday, August 23, 2016

पिस्तौल

धांय धांय धांय!
उसने जेब से पिस्तौल निकाली और गोली चला दी. उस बच्चे का चोर-पुलिस पसंदीदा खेल था. पर उसको चोर को पकड़ना पसंद नहीं था, जैसे ही वो उसके हाथ लगता, वो बस पिस्तौल निकालता था और गोली चला देता था.

वह बड़ा हुआ; अब वह गोली नहीं चलाता था. अब वह सिर्फ पकड़ा करता था, अपने आस पास की चीजों को, अपने रिश्तों को, अपने सपनों को. जितना वो उनको पकड़ने की कोशिश करता था, उतना ही वो चीजें उससे दूर होती जा रही थीं.

इस पकड़म पकड़ाई के खेल से उसे ऊब होने लगी थी, और उसे बचपन का वो चोर-पुलिस का खेल याद आया, जब वो चोर को पकड़ता नहीं था, सिर्फ निपटाता था और खुश हो जाता था.  बस फिर क्या था, उसने अपनी जेब से पिस्तौल निकाली और दुनिया को गोली मार दी.
धांय धांय धांय!

3 comments:

  1. perfectly presented the dilemma and obviously the conclusion/realisation would bring peace to boy if not to the world !

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  2. A good sarcasm on worldly-mindedness but man is social animal.Social Theory says being social is is demand of the society and one can not run away with that demand.

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